रायपुर।छत्तीसगढ़ की पारंपरिक भाजियों में शामिल चेज भाजी अब न सिर्फ ग्रामीण रसोईयों में बल्कि वैज्ञानिकों और किसानों के बीच भी खास पहचान बना रही है. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के अनुसंधान सह संचालक डॉ. धनंजय शर्मा ने जानकारी दी कि विश्वविद्यालय द्वारा प्रदेश की 36 प्रमुख पारंपरिक भाजियों को बढ़ावा देने का अभियान चलाया गया, जिसके तहत अब तक कुल 56 स्थानीय भाजियों का संग्रह किया जा चुका है. इनमें से कई भाजियां ऐसी हैं, जिन्हें किसान व्यवसायिक रूप से उगाते हैं और बड़े चाव से खाते भी हैं.डॉ. धनंजय शर्मा ने ने बताया कि छत्तीसगढ़ के खास भाजियों में से एक है चेज भाजी, जिसे आमतौर पर ‘देशी चेज’ या ‘जूट की भाजी’ के नाम से जाना जाता है. यह भाजी फाइबर यानी रेशे से भरपूर होती है, जिससे गर्मी के मौसम में इसके सेवन से पाचन तंत्र को लाभ मिलता है और शरीर में ठंडक बनी रहती है.चेज भाजी मुख्यतः दो प्रकार की होती है, लाल चेज और सफेद चेज. लाल चेज को साधारणतः तलकर खाया जाता है जबकि सफेद चेज को खट्टे के सब्जी के रूप में तैयार किया जाता है.कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, चेज भाजी की खेती फरवरी के अंत से शुरू करना सबसे उपयुक्त रहता है. इसके लिए बीज विधि का प्रयोग किया जाता है. छिड़काव विधि और कतार विधि हालांकि छिड़काव विधि में कीटों का खतरा अधिक रहता है,चेज भाजी की जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए नीम आधारित कीट नाशकों के उपयोग की सलाह दी जाती है, जिससे पत्तों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों जैसे ‘पत्ता काटक’ से फसल को बचाया जा सके. इसके साथ ही यह तरीका पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित माना जाता है. छत्तीसगढ़ की यह परंपरागत और स्वास्थ्यवर्धक भाजी अब न केवल आदिवासी क्षेत्रों तक सीमित है, बल्कि इसके व्यावसायिक उत्पादन से किसान भी आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं. चेज भाजी की मांग शहरी क्षेत्रों में भी बढ़ रही है, जिससे इसकी बाजार संभावनाएं और व्यापक हो गई हैं।