Tuesday, July 29, 2025
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    सच्ची कहानी: ऐसी थी हमारी फौज। दोस्ती, ज़िम्मेदारी और बलिदान का वो रूप, जो शब्दों से परे है

    1971 का वो दिसंबर था। बर्फीली हवा चल रही थी। युद्ध की सरगर्मियाँ अपने चरम पर थीं। गोरखा राइफल्स के जवान एक बड़े ऑपरेशन की तैयारी में थे। एक पाकिस्तानी चौकी को ध्वस्त करना था। मिशन आत्मघाती था। शायद कोई लौटे, शायद कोई नहीं।

    कर्नल श्याम केलकर ने दो युवा अफसरों को बुलाया—

    “अटैक करना है। सुसाइडल है। फ्रंट पर तुम दोनों में से कोई एक ही जाएगा। कौन तैयार है?”

    दोनों जवान चुप। फिर एक ने कहा—

    “अगर जान की बाज़ी लगानी है, तो मैं जाऊंगा सर।”

    दूसरा बोला—

    “मैं डरता हूं क्या पाकिस्तानियों से? मैं ही जाऊंगा!”

    दोनों जिगरी यार थे। साथ ट्रेनिंग ली थी, साथ खून पसीना बहाया था। कर्नल बोले—

    “जाओ, आपस में तय कर लो। किसे जाना है, मुझे बता देना।”

     

    दोनों एक किनारे जाकर बैठ गए। चुपचाप।

     

    फिर दूसरे वाले ने पहले से कहा—

    “देख भाई, तेरी शादी हो चुकी है। 6 महीने का बेटा है तेरा। मेरा क्या है? अकेला हूं। हां, तीन बहनें हैं, लेकिन मैंने सवा लाख की पॉलिसी ले रखी है। अगर मर भी गया तो तीनों को 40-40 हजार मिलेंगे। मुझे जाने दे भाई।”

     

    पहले वाला कुछ नहीं बोला। बस उसकी आंखों में एक लड़ाई थी—दोस्ती और ज़िम्मेदारी की।

     

    आख़िरकार उसने हामी भरी।

    “ठीक है यार, तू जा। मैं पीछे की टीम में रहूंगा।”

     

    अगले दिन फ्रंट पर जाने से पहले दूसरा वाला—कैप्टन प्रवीण कुमार जौहरी—ने सिर मुंडा लिया। क्यों किया? कोई नहीं जान पाया।

     

    शायद मौत के करीब जाने की अपनी एक तैयारी होती है।

     

    रात में हमला हुआ। पाकिस्तानी चौकी पर आग बरसी। प्रवीण कुमार जौहरी गरजते हुए आगे बढ़े। उनके हाथ में खुखरी थी। उन्होंने कई पाकिस्तानी सैनिकों की गर्दन काट दी। लेकिन दुश्मन की गोलियों ने उनका रास्ता रोक लिया।

     

    वे वीरगति को प्राप्त हुए।

     

    लेकिन उनकी शहादत बेकार नहीं गई। उस हमले में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना को रौंद डाला। चौकी पर तिरंगा फहरा दिया गया।

     

    युद्ध खत्म हुआ। शांति लौटी।

    पहले वाला—कैप्टन हिमकार वल्लभ पांडेय—अपने दोस्त के घर, बरेली गया।

    दरवाज़ा खोला एक बुज़ुर्ग मां ने।

     

    “आओ बेटा…”

    उनकी आंखें नम थीं।

    “वो हमेशा तुम्हारा नाम लिया करता था। कहता था कि तुझ पर जान दे सकता है। अब वो नहीं रहा, तो तू ही मेरा बेटा है।”

     

    उस दिन एक मां को बेटा खोया, लेकिन एक नया बेटा मिल गया।

     

    कैप्टन हिमकार वल्लभ पांडेय—25 साल

    कैप्टन प्रवीण कुमार जौहरी (सेना मेडल, मरणोपरांत)—23 साल

    कर्नल—श्याम केलकर

    कहानी दर्ज है किताब “1971: Charge of the Gorkhas and Other Stories” में।

    जय हिंद की सेना।

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