Monday, July 28, 2025
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    सच्ची कहानी: क्यूबा के असली हीरो फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा

    1950 के दशक में क्यूबा एक अजीब विरोधाभास से भरा हुआ देश था। शहरों में नाच-गाने, शराब, कैसीनो और अमेरिकी टूरिस्टों की भीड़ थी, लेकिन गांवों में भूख, गरीबी और खामोशी थी। देश की जमीन और चीनी फैक्ट्रियां विदेशी कंपनियों के कब्जे में थीं। और इन सबके ऊपर बैठा था फुलजेंसियो बतिस्ता — एक तानाशाह जो अमेरिका के इशारे पर चलता था।

     

    वो तानाशाह जनता को बोलने नहीं देता था। प्रेस पर रोक थी। मजदूरों को शोषण सहना पड़ता था। किसान अपनी ही ज़मीन पर नौकर बन चुके थे। अमेरिका खुश था, क्योंकि उसका मुनाफा सुरक्षित था। लेकिन आम क्यूबाई को लग रहा था कि यह आज़ादी नहीं, सिर्फ गुलामी का नया नाम है।

     

    इसी दौर में दो नौजवान सामने आए।

    एक था फिदेल कास्त्रो — पढ़ा-लिखा, वकील, तेज भाषण देने वाला।

    दूसरा था चे गेवारा — अर्जेंटीना से आया हुआ एक डॉक्टर, जिसने लैटिन अमेरिका की गरीबी को अपनी आंखों से देखा था।

    दोनों को लगता था कि अब क्रांति के बिना कोई रास्ता नहीं बचा। उन्होंने हथियार उठाने का फैसला किया।

     

    उन्होंने पहले हमला किया, हार गए, जेल गए, फिर देश से बाहर निकले। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। मेक्सिको में फिर से संगठित हुए। फिर एक नाव पर सवार होकर 82 लोग क्यूबा लौटे। वो नाव थी Granma — आज भी क्यूबा में उसे सम्मान से याद किया जाता है। जंगलों में छिपकर उन्होंने गुरिल्ला लड़ाई शुरू की। धीरे-धीरे लोग जुड़ने लगे। किसान, छात्र, मजदूर — सबने इस आवाज को अपनाया।

     

    बतिस्ता की सेना अमेरिका से हथियार लेती थी, लेकिन उसका मनोबल टूट चुका था। जनता का भरोसा अब क्रांतिकारियों में था। तीन साल की लड़ाई के बाद, 1 जनवरी 1959 को बतिस्ता देश छोड़कर भाग गया। हवाना की सड़कों पर लोग नाच रहे थे, और फिदेल कास्त्रो राष्ट्रपति बन गए।

     

    क्रांति कामयाब हो गई थी, लेकिन असली लड़ाई तो अब शुरू हुई थी। अमेरिका को ये क्रांति बिल्कुल नहीं भायी। उसे डर था कि बाकी लैटिन अमेरिका में भी ऐसे नेता खड़े होंगे, जो “नो प्रॉफिट, ओनली पीपल” की बात करेंगे। इसलिए उन्होंने क्यूबा को चारों तरफ से अलग करना शुरू किया। ट्रेड बंद किया, हमले कराए, यहां तक कि फिदेल और चे को मारने की कोशिशें भी की।

     

    लेकिन क्यूबा झुका नहीं।

    फिदेल ने देश को शिक्षा और स्वास्थ्य में मजबूत किया।

    चे गेवारा ने क्रांति को बाकी देशों तक पहुंचाने की कोशिश की।

    वो कांगो गया, फिर बोलीविया। वहां मारा गया।

    मरते समय भी उसने अपने कातिल से कहा — “तुम सिर्फ एक इंसान को मार रहे हो, सोच को नहीं।”

     

    क्यूबा की क्रांति ने ये साबित किया कि दो लोग, अगर ईमानदारी और जुनून से भरे हों, तो साम्राज्य की नींव हिला सकते हैं। चे गेवारा आज भी दुनिया में एक चेहरा नहीं, एक प्रतीक है — उस आवाज़ का जो अन्याय के खिलाफ उठती है।

    कभी-कभी लगता है कि इतिहास उन लोगों को ही याद रखता है जो सत्ता में रहे, लेकिन कभी-कभी दो जुनूनी नौजवान पूरी व्यवस्था को उल्टा कर देते हैं, और फिर इतिहास खुद उन्हें याद करता है।

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