हाचीको की कहानी – वफ़ादारी और प्रेम की मिसाल
हाचीको एक अकीता नस्ल का कुत्ता था, जिसका जन्म 1923 में जापान में हुआ था। वह बिना शर्त प्रेम और वफ़ादारी का प्रतीक बन गया। आज भी उसकी कहानी दुनियाभर के लोगों के दिलों को छूती है।
—शुरुआत एक रिश्ते की
हाचीको को टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हिदेसाबुरो उएनो ने पाला था। हर सुबह हाचीको अपने मालिक के साथ शिबुया स्टेशन तक जाता और उन्हें ट्रेन में चढ़ते हुए देखता। शाम को, वह वापस स्टेशन आता और उनके लौटने का इंतज़ार करता। यह रोज़ की आदत बन गई थी। धीरे-धीरे स्टेशन पर आने-जाने वाले लोग भी इस प्यारे नज़ारे को देखने लगे।
एक दुखद मोड़
एक दिन, मई 1925 में, प्रोफेसर उएनो हमेशा की तरह काम पर गए, लेकिन विश्वविद्यालय में उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ और उनका देहांत हो गया। वह कभी वापस नहीं लौटे।
लेकिन हाचीको को यह नहीं पता था। वह उसी शाम स्टेशन पर आया, और अपने मालिक का इंतज़ार करता रहा। जब प्रोफेसर नहीं आए, तो हाचीको अगली शाम फिर आया। और फिर अगली शाम…
इंतज़ार जो कभी खत्म नहीं हुआ
लगभग 10 सालों तक, हाचीको हर दिन शिबुया स्टेशन आता रहा — उसी समय, उसी जगह, अपने मालिक के लौटने की उम्मीद में।
स्टेशन के कर्मचारी और स्थानीय लोग उसकी इस वफ़ादारी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसका ख्याल रखना शुरू कर दिया। उसकी कहानी पूरे जापान में फैल गई और वह एक राष्ट्रीय प्रतीक बन गया।
सम्मान और श्रद्धांजलि
हाचीको की मौत 1935 में हुई, 11 साल की उम्र में। उसका शरीर उसी स्टेशन के पास पाया गया, जहाँ वह सालों तक अपने मालिक का इंतज़ार करता रहा।
लोग उसकी वफ़ादारी से इतने भावुक हो गए कि 1934 में, जब वह ज़िंदा था, उसी स्टेशन के बाहर उसकी कांस्य प्रतिमा लगाई गई।
आज भी वह प्रतिमा शिबुया स्टेशन के बाहर खड़ी है — वफ़ादारी और प्रेम का प्रतीक बनकर।
विरासत
हाचीको की कहानी पर किताबें लिखी गईं, फ़िल्में बनीं (जैसे हॉलीवुड फ़िल्म Hachi: A Dog’s Tale, जिसमें रिचर्ड गेरे ने अभिनय किया)।
जापान के स्कूलों में आज भी यह कहानी बच्चों को सिखाई जाती है — कि सच्चा प्रेम कभी नहीं मरता।
हाचीको को मौत की समझ नहीं थी — लेकिन प्यार की समझ थी।
और वह इंतज़ार करता रहा… अंतिम सांस तक।