**आदिवासी प्रकृति, परंपरा और सहजीवन की जीवित विरासत हैं -डॉ. विनय कुमार पाठक**
दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन समारोह में मुख्य अतिथि डॉ. विनय कुमार पाठक ने आदिवासी जीवन को समझने के महत्व पर जोर दिया, उनकी गहरी जड़ वाली परंपराओं और प्रकृति के साथ सहजीवी संबंधों को उजागर किया।
चांसलर डॉ. विनय एम. अग्रवाल ने बोलियों, शिल्प, लोककथाओं और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करने के लिए एक आदिवासी संग्रहालय और पुस्तकालय की स्थापना का प्रस्ताव दिया।
कुलपति डॉ. आनंद महलवार ने आदिवासियों के समृद्ध वनस्पति ज्ञान पर प्रकाश डाला, जिसे अक्सर मुख्यधारा के विज्ञान द्वारा अनदेखा किया जाता है।
डॉ. मोनाली माल ने छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों के आर्थिक संघर्षों को इंगित किया, विशेष रूप से जंगल-आधारित आजीविका के माध्यम से घरों को बनाए रखने में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका।
कार्यक्रम समन्वयक डॉ. दिवाकर तिवारी ने दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजन की चुनौतियों का उल्लेख किया, लेकिन उन्होंने सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि और नए अवसरों को भी मनाया।
इस अवसर पर डॉ. निस्टोर कुजुर, डॉ. कुबेर सिंह गुरूपंच, डॉ. रश्मि कुजूर, डॉ. विनोद कुमार वर्मा, डॉ. राजकुमार मीना, डॉ. आदर्श एवं डॉ. जगन्नाथ दुबे उपस्थित रहे।