Thursday, July 31, 2025
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    सच्ची कहानी : मुकुल देव का यूं चले जाना!

    मुकुल देव अब हमारे बीच नहीं रहे। एक ऐसे कलाकार, जिनका चेहरा भले ही अक्सर साइड रोल में नजर आता था, लेकिन हर बार उनकी मौजूदगी स्क्रीन पर महसूस होती थी। उनके जाने से सिनेमा, खासकर चरित्र भूमिकाओं में एक खास किस्म की गहराई देने वाला अभिनेता खो गया।

    दिल्ली में 30 नवंबर 1970 को जन्मे मुकुल देव ने अपने करियर की शुरुआत बतौर पायलट की थी, लेकिन उनकी असली उड़ान अभिनय के आसमान में थी। उन्होंने 1996 में फिल्म ‘दस्तक’ से बॉलीवुड में कदम रखा, जहां वे सुष्मिता सेन के साथ नजर आए। इस फिल्म में उनका नेगेटिव किरदार आज भी याद किया जाता है। इसके बाद उन्होंने ‘किला’, ‘मुझे मेरी बीवी से बचाओ’, ‘यमला पगला दीवाना’, ‘सन ऑफ सरदार’, ‘र… राजकुमार’, ‘जय हो’ और ‘हीरो’ जैसी कई फिल्मों में अपनी भूमिकाओं से खुद को साबित किया।

    मुकुल देव सिर्फ हिंदी सिनेमा तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने पंजाबी, तेलुगू, मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया और वहां भी अपनी पहचान बनाई। टीवी की दुनिया में भी वे सक्रिय रहे। ‘फियर फैक्टर इंडिया’ के पहले सीजन को होस्ट करने के अलावा उन्होंने ’21 सरफरोश: सारागढ़ी 1897′ जैसे धारावाहिकों में यादगार भूमिकाएं निभाईं।

    उनका चेहरा कभी हीरो की पहली पसंद नहीं रहा, लेकिन वे उन चुनिंदा कलाकारों में थे जो किसी भी किरदार को अपने अभिनय से यादगार बना देते थे। एक सहज अभिनेता, जिनकी आंखों में भाव थे, आवाज में वजन था, और अंदाज़ में एक सच्चाई थी।

    मुकुल देव का यूं चले जाना चुपचाप नहीं हो सकता। उन्होंने जो किरदार जिए, वे हमारे ज़ेहन में रहेंगे। अभिनय की दुनिया में उन्होंने जो स्पेस भरा, उसे कोई और नहीं भर सकता। यह सिर्फ एक अभिनेता की मौत नहीं, बल्कि एक सच्चे कलाकार की विदाई है।

    ईश्वर उन्हें शांति दे।

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