Tuesday, July 29, 2025
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    सच्ची कहानी: इंसानी प्रदर्शन की हैवानियत भरी दास्तां

    ओटा बेंगा अफ्रीका के कांगो जंगलों में रहने वाली एक आदिवासी जाति के सदस्य थे। उनका जन्म 1880 के आसपास हुआ था। वे एक छोटे कद के, दुबले-पतले और घुंघराले बालों वाले इंसान थे, जो अपने जंगल में स्वतंत्रता से रहते थे।

    1904 में एक अमेरिकी व्यापारी और खोजी व्यक्ति सैमुअल वर्नर अफ्रीका गया। उसने वहां से कई लोगों को पैसे या धोखे से अमेरिका लाया, ताकि उन्हें एक प्रदर्शनी में “जंगली इंसानों” के रूप में दिखाया जा सके। ओटा बेंगा भी उन्हीं में से एक थे। उस समय अमेरिका में “Louisiana Purchase Exposition” नाम की बहुत बड़ी प्रदर्शनी हो रही थी, जहां दुनिया भर की चीजें दिखाई जा रही थीं — लेकिन उसमें इंसानों को भी “नमूने” की तरह दिखाया गया।

     

    ओटा बेंगा को अमेरिका में एक अजूबे की तरह पेश किया गया। लोग उसकी त्वचा का रंग, उसके दांत (जो नुकीले थे, क्योंकि उसकी जाति में दांतों को विशेष तरीके से तराशा जाता था), और उसके कपड़े देखकर हैरान होते थे। लोग हंसते थे, इशारे करते थे, और कई बार अपमानजनक बातें करते थे।

     

    सबसे दुखद समय तब आया जब 1906 में न्यूयॉर्क के ब्रोंक्स चिड़ियाघर ने ओटा बेंगा को एक पिंजरे में बंद कर दिया। वह पिंजरा बंदरों के पास था, और उस पर लिखा था – “ओटा बेंगा, अफ्रीकी पिग्मी, उम्र 23″। लोग उसे देखने आते जैसे वो कोई जानवर हो। उसे वहां तीर-कमान के साथ बैठाया गया था, और चिड़ियाघर के रिकॉर्ड में लिखा गया कि वो “मनुष्य और वानर के बीच की कड़ी” है। यह एक वैज्ञानिक नस्लवाद का उदाहरण था, जहाँ अश्वेत लोगों को ‘कमतर’ समझा जाता था।

     

    हालाँकि कई अफ्रीकी-अमेरिकी नेताओं और ईसाई संस्थाओं ने इसका विरोध किया। दबाव बढ़ने पर ओटा बेंगा को चिड़ियाघर से बाहर निकाला गया। फिर उसे एक अनाथालय और बाद में एक काले लोगों के स्कूल में रखा गया। वहां उसने अंग्रेज़ी सीखी, कपड़े पहनने की आदत डाली और कुछ समय के लिए एक सामान्य जीवन जीने की कोशिश की।

     

    लेकिन वो कभी ठीक से उस दर्द से उबर नहीं पाया जो उसे अपमान और अकेलेपन के रूप में झेलना पड़ा था। उसका पूरा परिवार अफ्रीका में मार दिया गया था, और अब वह एक अजनबी देश में था जहाँ लोग उसे इंसान की तरह नहीं, तमाशे की तरह देखते थे।

    1916 में, जब वह सिर्फ 32 साल का था, ओटा बेंगा ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

    ओटा बेंगा की कहानी आज भी इंसानियत और नस्लवाद के इतिहास में एक दुखद अध्याय के रूप में दर्ज है। यह बताती है कि किस तरह एक सभ्य समाज ने एक मासूम इंसान के जीवन को तमाशा बना दिया।

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